शनिवार, 29 नवंबर 2008

आतंकवाद का धर्म होता है


क्या है आतंक का चेहरा, क्या है इसका मज़हब? ये बात हम लोग कब समझेंगे। मैं जानता हूं इसे समझना इतना आसान नहीं है पर ये बात समझनी होगी कि, आज तक जो लोग कहते आए है ''आतंक का कोई धर्म या मज़हब नहीं होता'' सरासर ग़लत है। आतंक का धर्म होता है, आतंकवादियों का धर्म होता है। जी हां अगर आतंकवादियों का मज़हब आतंक है, तो फिर आतंक का मज़हब भी तो होता होगा? सवाल कई सारे हैं आखिर क्यों आतंकवाद की भूख आम इंसानों से ही शांत होती है, क्यों इसकी वेदी पर कभी कोई सियासतदार नहीं सुलगता! क्यों बर्बाद होते हैं सिर्फ मासूमों के घर, क्यों मंज़र बदलता हैं किसी मज़लूम की ज़िंदगी का!
ऐसे वक़्त जब पांच प्रदेशों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और लोकसभा चुनाव सिर पर खड़ा है, पक्ष और विपक्ष के आरोप प्रत्यारोपों ने आम जनता की सोचने की क्षमता को क्षीण कर दिया है, महंगाई, प्रदेशवाद, सरकारी घोटालो के साथ मुस्लिम और हिन्दू आतंकवाद की दुहाई देते इन पक्ष और विपक्ष के नेताओं ने जनता को अपने आप से एक बार फिर खुद का परिचय लेने को कहा है, वहां मुम्बई में हुआ ये धमाका इस आम जनता के ब्रेनवॉश की कोई सोची समझी साज़िश नहीं तो और क्या है। क्या आप भी मानते है कि इस वक़्त ये आतंकी घटना कोई इत्तेफाक है, क्या आप मानते है कि सुरक्षा एजेंसियों को इसकी कोई जानकारी नहीं होगी, क्या इस मौत के तांडव में शहीद हुए एटीएस चीफ हेमंत करकरे, एसीपी अशोक काम्टे, मेजर उन्नीकृष्णन, इनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर समेत वो सौ से ज्यादा लोग जो इसकी भेंट चढे़ उनके परिवार वालों को मुआवज़ा देकर उनके ज़ख़्मों को मरहम लग जाएगा। क्या इससे उनकी शहादत का कर्ज़ हम चुका पाएंगे जो उन्होनें हमारी जान के लिए अपनी जान की बाज़ी देकर हम पर चढ़ाया है। क्या हमारा इतना फ़र्ज़ नहीं बनता कि हम इन सवालों के जवाब तलाशें। हम ये सोचें ये समझें कि क्या है आतंक का असली चेहरा और उसका धर्म क्या हैं। जी हां आतंक का धर्म होता है, उसका मज़हब होता है, और वो है "राजनीति"! सत्ता की भूख में वहशी हुए राजनेता चाहे वो पक्ष में हो या विपक्ष में सभी इसके जिम्मेदार हैं।
मुंबई में 59 घंटों तक आतंक का नंगा नाच चला पर कोई नेता उसकी भेंट नहीं चढ़ा, मीडियाकर्मी देश को हर वक़्त उससे रूबरू कराते रहे, पुलिसकर्मी, सीआरपीएफ, एटीएस और एनएसजी कमांडोज़ उस आतंकवाद से जुझते रहे, लेकिन सियासतदार थे कि कभी विदेशी ताकत, कभी किसी आतंकवादी संगठन की दुहाई देकर हमें बरगलाते रहे। मोबाइल फोन पर एसएमएस के जरीए देश को मुद्दों से दरकिनार करने की कोशिश की जाती रही, न्यूज़ चैनल्स पर बड़े बड़े दावों वाले इंटरव्यू दिए जाते रहे पर ये सब लोगो को भटकाने की साज़िश मात्र है, ये हम कब समझेंगे। कब समझेंगे कि अपने पापों पर पर्दा डालने के लिए इन सियासतदारों ने मुम्बई में आतंकवादी घटना के साथ इस पर देश प्रेम के बड़े बड़े झूठे दिखावे करने का गंदा खेल खेला है। जाने हम ये कब समझेंगे कि आतंकवाद का धर्म होता है, राजनीति ही आतंकवाद का एकमात्र धर्म होता है।